(18) श्री सीताजी का पार्वती पूजन एवं वरदान प्राप्ति तथा राम-लक्ष्मण संवाददोहा : * देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि॥234॥ भावार्थ:-मृग, पक्षी और वृक्षों को देखने के बहाने सीताजी बार-बार घूम जाती हैं और श्री रामजी की छबि देख-देखकर उनका प्रेम कम नहीं बढ़ रहा है। (अर्थात् बहुत ही बढ़ता जाता है)॥234॥ चौपाई : * जानि कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल मूरति॥प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी॥1॥ भावार्थ:-शिवजी के धनुष को कठोर जानकर वे विसूरती (मन में विलाप करती) हुई हृदय में श्री रामजी की