(14) रावणादि का जन्म, तपस्या और उनका ऐश्वर्य तथा अत्याचारदोहा : * भरद्वाज सुनु जाहि जब होई बिधाता बाम।धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम॥175॥ भावार्थ:-(याज्ञवल्क्यजी कहते हैं-) हे भरद्वाज! सुनो, विधाता जब जिसके विपरीत होते हैं, तब उसके लिए धूल सुमेरु पर्वत के समान (भारी और कुचल डालने वाली), पिता यम के समान (कालरूप) और रस्सी साँप के समान (काट खाने वाली) हो जाती है॥175॥ चौपाई: * काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा॥दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा॥1॥ भावार्थ:-हे मुनि! सुनो, समय पाकर वही राजा परिवार सहित रावण नामक राक्षस हुआ। उसके