रामायण - अध्याय 1 - बालकाण्ड - भाग 4

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(4)   श्री रामगुण और श्री रामचरित्‌ की महिमा* मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि देखि दयानिधि पोसो॥2॥ भावार्थ:-वे (श्री रामजी) मेरी (बिगड़ी) सब तरह से सुधार लेंगे, जिनकी कृपा कृपा करने से नहीं अघाती। राम से उत्तम स्वामी और मुझ सरीखा बुरा सेवक! इतने पर भी उन दयानिधि ने अपनी ओर देखकर मेरा पालन किया है॥2॥ * लोकहुँ बेद सुसाहिब रीती। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती॥गनी गरीब ग्राम नर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर॥3॥ भावार्थ:-लोक और वेद में भी अच्छे स्वामी की यही रीति प्रसिद्ध है कि वह विनय सुनते ही