श्रीमद् ‍भगवद्‍गीता - अध्याय 14

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अध्याय चौदह  अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोगज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत्‌ की उत्पत्तिश्रीभगवानुवाच परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम्‌ । यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥ (१) śrī bhagavānuvāca paraṅ bhūyaḥ pravakṣyāmi jñānānāṅ jñānamuttamam. yajjñātvā munayaḥ sarvē parāṅ siddhimitō gatāḥ৷৷14.1৷৷ भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - हे अर्जुन! समस्त ज्ञानों में भी सर्वश्रेष्ठ इस परम-ज्ञान को मैं तेरे लिये फिर से कहता हूँ, जिसे जानकर सभी संत-मुनियों ने इस संसार से मुक्त होकर परम-सिद्धि को प्राप्त किया हैं। (१)  इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः । सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥ (२) idaṅ jñānamupāśritya mama sādharmyamāgatāḥ. sargē.pi nōpajāyantē pralayē