श्रीमद् ‍भगवद्‍गीता - अध्याय 11

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अध्याय ग्यारह अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोगविश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना  अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ । यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥   arjuna uvāca madanugrahāya paramaṅ guhyamadhyātmasaṅjñitam. yattvayōktaṅ vacastēna mōhō.yaṅ vigatō mama৷৷11.1৷৷   भावार्थ : अर्जुन बोले- मुझ पर अनुग्रह करने के लिए आपने जो परम गोपनीय अध्यात्म विषयक वचन अर्थात उपदेश कहा, उससे मेरा यह अज्ञान नष्ट हो गया है॥1॥    भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया । त्वतः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्‌ ॥   bhavāpyayau hi bhūtānāṅ śrutau vistaraśō mayā. tvattaḥ kamalapatrākṣa māhātmyamapi cāvyayam৷৷11.2৷৷   भावार्थ : क्योंकि हे कमलनेत्र! मैंने आपसे भूतों की उत्पत्ति और प्रलय विस्तारपूर्वक सुने