प्यार, कितनी बार !

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एक सहज, स्वाभाविक अभिव्यक्ति लेखक --प्रताप नारायण सिंह =============== मित्रों! नमस्कार स्पष्ट करना चाहती हूँ कि मैं समीक्षक नहीं हूँ | समीक्षा में गुण-दोष दोनों की विवेचना की जाती है| मुझमें उस समालोचना का गुण नहीं हैं अत: मैं जो भी कुछ कह पाती हूँ केवल प्रतिक्रिया स्वरूप ही कह पाती हूँ | यह उपन्यास है तीन मित्रों की ऐसी वय से गुज़रते हुए लम्हों का जो बड़े स्वाभाविक रूप में आते-जाते रहते हैं | मैंने इसे पढ़कर निम्न प्रतिक्रिया देने का प्रयास भर किया है | इस विश्वास के साथ कि मित्र मेरे भावों को समझेंगे |  वह फूलों