खण्डकाव्य रत्नावली 18 खण्डकाव्य श्री रामगोपाल के उपन्यास ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 उन्नीसवाँ अध्याय – संत तुलसीदास दोहा – वृद्ध इवस्था जान जन, मृत्यु निकट लें मान। दुखी होंय नहिं रंच भी, धरें राम का ध्यान।। 1 ।। रतना मैया मृत्यु विचारै। वृद्ध शरीर अंत निरधारै।। दिन पर दिन दुर्वल तन होवै। कष्ट मिटै चिरनिद्रा सोवै।। हरको भी अति बूढ़ी होई। गणपति साठ साल का सोई।। रहे पुजारी सोइ सिधारे। गणपति को पूजा बैठारे।। रामू धाक जमाये अपनी। गंगेश्वर भी