बिसायती बाबा

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पीठ पर गठरी लादे, सफेद ट्रीम की हुई दाढ़ी वाला बाबा महीने में एक बार उस गांव में आ ही जाता था। जब भी आता था गांवभर की औरतें उसे घेर लेती और अपनी-अपनी पसंद का सामान पूछती थी उससे। पूरी बिसायत का सामान लिए वो बस गली-गली, मोहल्ला-मोहल्ला और गांव-गांव घूमता था। आज इस गांव कल उस गांव। यही उसकी ज़िन्दगी थी और इसी से था उसका गुजारा। आज एक बार फिर से वही दाढ़ी वाला बिसायती बाबा गांव में आया। गोटा, किनारी, सितारा, फूल, चूड़ी, मुंदड़ी, काज़ल, बिन्दी, लाली, रूज, पाउडर, कांखी, कंघा, कंघी, नेल पाॅलिश, बॉडी (ब्रा)