इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 20

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(20) अर्नव मन्दिर को आज बहुत गौर से देख रहा था, उसे आज मन्दिर अलग और नया सा लग रहा था। सभी लोग शिवमन्दिर के अंदर थे। अर्नव सीढ़ियों पर चढ़ता हुआ हर एक बढ़ते कदम पर ख़ुशी को याद करता है। उधर मन्दिर में ख़ुशी को अहसास होता है कि अर्नव उसके आसपास ही है। ख़ुशी- हम भी कितने पागल है। वो और यहाँ मन्दिर आएंगे हो ही नहीं सकता। ख़ुशी अपने ही मन को झिड़क रही थी कि तभी अर्नव मन्दिर के मुख्य द्वार की चौखट में पैर रखते हुए दिखता है। मन कहता है- देख लो नवाबजादे