बाहर गली में हुड़दंग की आवाज़ सुनकर ही वो डरी, सहमी सी अपने कमरे में जा दुबकी थी। घुलण्डी के दिन मस्तानों की टोली ने अपनी ही धुन में मस्ती के गीत गाती, ढोल बजाती ’’होली है’’ की आवाज से पूरी गली को गुंजायमान कर रखा था। रंग बिरंगे किन्तु बदरंग से चेहरे और चेहरों पर पुते रंगों के कारण आसानी से किसी को भी नहीं पहचाना जा सकता है। लेकिन फिर भी अपनी ही मस्ती में मस्त कभी रंग बरसे भीगे चूनर वाली ...... तो कभी होली के दिन फूल खिल जाते हैं ......... गाते हुए। इधर डरी सहमी