।। श्रीहरिः ।।दिव्य जीवन की एक झलकहमारा सौभाग्य है कि हमारी वसुन्धरा कभी संतों से विरहित नहीं रही। संतों की चेष्टायें साधन काल में भी एवं सिद्धावस्था में भी विभिन्न प्रकार की होती हैं पर होती है समस्त जगत् के कल्याण के लिये। हम अपनी रज-तमाच्छादित मन-बुद्धि के द्वारा संतों को पहचान नहीं सकते। देवर्षि नारदजी के सूत्र ‘तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्’ के अनुसार श्रीभगवान् एवं उनके परम भक्त में भेद का अभाव हो जाता है। ऐसी स्थिति में संतों की तुलना करने की चेष्टा करना महान् मूर्खता है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिये संत को पहचानना ही संभव नहीं है तब