अध्याय 13 यादों के कारवां में43. ये शाम हमारी हैहरेक की शाम सुनहरी होती हैउसकी अपनी होती है,दिन भर के सफर, संघर्ष ,परिश्रम के बाद;ज्ञान के लिएरोटी के लिए अपनी संतुष्टि के लिएऔर,संघर्ष भी अपने-अपनेजैसे,शहरों के हाथ ठेलों में खींचते भारी बोझमें अपनी जिंदगी को खींचते मजदूर,कि जीवन है तो जीना है, वाले ढर्रे पर।जैसे,कारखानों में शिफ्ट का भोंपू बजते हीभीतर जाकर श्रम करने को तत्पर श्रमवीर पंक्तिबद्ध,जो शिफ्ट खत्म होने का भोंपू बजते- बजते खुद मशीन में पूरी तरह तब्दील हो चुके होते हैं,जैसे,सब्जी बेचने को निकली बुढ़िया की टोकरी की बची सब्जियां जेठ की धूप और लू के