रात बारह बजे का वक्त था ,दो दोस्त रेलवें स्टेशन के बाहर एक टपरी पर बैठे चाय पी रहे थे,एक का नाम श्रीहरि और दूसरे का रामानुज था,उधर से आने जाने वाली रेलों की आवाज़ सुनाई दे रही थी,चाय बहुत गर्म थी इसलिए दोनों धीरे-धीरे घूँट भर रहे थे, उनके सामने ही थोड़ी दूर पर पेड़ के नीचे चबूतरे पर एक औरत बैठी थी, , गोल मटोल चेहरा, तीखी नाक और पतले से बहुत ही बेतरतीब तरीके के लाली लगे होंठ,वो अक्सर अपने ग्राहकों की तलाश में वहाँ बैठा करती थी,तभी श्रीहरि उस औरत को देखकर बोला.... “देखा!बैठी है जाल