बंधन प्रेम के - भाग 13

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अध्याय 13 (39) अभी सूर्योदय होने में थोड़ा समय था.....पर.....रात लगभग बीत चुकी थी। रात में अंबर के एक कोने से दूसरे कोने तक खेलने कूदने और धमाचौकड़ी मचाने वाले तारे अब थक कर सो गए हैं और इक्का-दुक्का कोई तारा ही कहीं दिखाई देता है।इन तारों को जैसे सूर्य ने अपने उजाले के धुंधले प्रकाश की पतली चादर ओढ़ा दी हो और ये तारे सूर्य भवन में अब दिन भर आराम करने के बाद रात को पुनः अंबर में दिखेंगे और खिलखिला कर हंसने लगेंगे। जैसा प्रकृति का नियम है।रात्रि विश्राम के बाद लोग फिर एक नई सुबह का