निशा

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मौसम शाम की सुनहरी अंगडाईयां ले रहा था। पानी दीवार काटते हुए पास के खेतों में घुसा जा रहा था। किसान को इसकी भनक न थी, नही तो वह कब का इसे रोक चुका होता, कबका पानी किसान के निशिचत किए रास्ते पर चलता रहता। इसी प्रकार मनुष्य नामक प्राणी के भी रास्ते समाज नामक संस्था तय करती है। अगर मनुष्य इन्हें काटने की चेष्टा करे, तो समाज मनुष्य को ही काटने मे जरा भी नही हिचकता। खैर समाज ने अपनी मूल्यों के लिए एक ढाँचा बुना ही है और इस ढांचे के अंदर रहकर जीने की अपेक्षा मनुष्य नामक