[पृष्ठभूमि]प्राचीनकाल से हिंदुओं की पुरानी युद्ध-प्रणाली प्रचलित थी, जिसमें दोनों पक्षों के बीच में खंबे के रूप में एक चिन्ह रखा जाता था शंख, भेरी, आदि बजाकर युद्ध प्रारंभ किया जाता था। शत्रु को बिना इशारा दिए युद्ध प्रारंभ करना निंदनीय माना जाता था। शत्रु को सावधान करना अनिवार्य था। यह प्रथा पुर्तगीजों के आगमन तक जारी थी। दक्षिण में मुसलमानों के आक्रमण कभी-कभार ही हुए। पुर्तगीज एवं केरल के नायर लोगों के बीच प्रतिस्पर्धा बहुत थी। नायरों ने कभी रात्रि में युद्ध नहीं किया। छिपकर भी आक्रमण नहीं किए। युद्ध सुबह होने के बाद ही प्रारंभ किया जाता था।