खण्‍डकाव्‍य रत्‍नावली - 3

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  खण्‍डकाव्‍य रत्‍नावली 3     श्री रामगोपाल  के उपन्‍यास ‘’रत्‍नावली’’ का भावानुवाद     रचयिता :- अनन्‍त राम गुप्‍त बल्‍ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्‍वालियर (म.प्र.) 475110 तृतीय – अध्‍याय – कबीर मण्‍डल दोहा – सुना जभी दामाद ने, लीना पूर्ण विराग। पाठक हू वैरागि बन, रहे भक्ति में पाग।। 1 ।। पतनी पहले स्‍वर्ग सिधारी। पुत्र न‍हीं था थी लाचारी।। फिर भी पांच सदस थे घर में। केसर-सुत-वधु बिटिया स्‍वयं में।। भार नहीं था कम सिर इनके। पंडिताई फिर पीछे जिनके।। घर छोड़े से बात न बनती। रतना इसे ठीक नहिं गिनती।। तर्क वितर्कन