दैत्यर्षि प्रह्लाद का अन्तिम जीवन[पौत्र को तत्त्वोपदेश तथा उनको बन्धन से छुड़ाना, प्रह्लाद चरित्र का माहात्म्य]दैत्यर्षि प्रह्लाद की रुचि प्रायः राज-काज में नहीं रह गयी थी, वे उदासीन-भाव से इसी प्रतीक्षा में राज-काज करते थे कि अपने किस उत्तराधिकारी को राजभार सौंपें जो प्रजारञ्जन में निपुण हो। प्रह्लाद के हृदय में यह भी एक खटकने की बात थी कि वे अपने चाचा हिरण्याक्ष के पुत्रों को भी राज्य का अधिकारी समझते थे और अपने पुत्र गवेष्ठि तथा विरोचन को भी शासनसूत्र के चलाने के योग्य समझते थे; किन्तु वे इस चिन्ता में रहते थे कि उनके बारम्बार उपदेश देने एवं