में और मेरे अहसास - 74

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हर्फ़-ओ-नवां से तरन्नुम बनता है lबनके गीत महफिलों में सजता है ll रहगुज़र-ए-जीस्त में हमराह मिले lतो रूह में सुकुनियत सा भरता है ll जब मुहब्बत में नजदीकियां बढ़े तब lदिल में धड़कनों को जिंदा करता है ll रिसता गहरा हो जाता है और यूही lसखी मेल मिलाप से प्यार झरता है ll गीत ग़ज़लों में रवानी आ ही जाती है lतब दिल से दिल को सुकून मिलता है llहर्फ़-ओ-नवां - अक्षर और आवाज़१५-२-२०२३ आबगीना है वजूद सभल जा बिखर न जाए कहीं lआज इंतजार के मारे दम ही निकल न जाए कहीं ll चारागर ही सीतमगारो की सिखला मे