परम भागवत प्रह्लाद जी - भाग29 - प्रह्लाद के समीप इन्द्र का अध्ययन

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[याचक इन्द्र को प्रह्लाद का शील-भिक्षादान, शील की महिमा]दैत्यषि प्रह्लाद जिस प्रकार सभी सद्गुणों के समूह थे, उसी प्रकार उनमें सर्व सम्पत्तियों और समस्त गुणों का आधारभूत शील भी पर्याप्त था। उनके शील-स्वभाव तथा उनकी शील-परायगता से सारा संसार उनके वशीभूत था और वे त्रैलोक्य के स्वामी थे। उनके ऐश्वर्य को देख मनुष्यों की कौन कहे, देवगण भी ललचाते थे। जिस प्रकार दैत्यराज हिरण्यकशिपु के समय अधर्मपूर्ण अत्याचार के बल से सारे दिक्पाल और देवराज इन्द्र उसके आज्ञानुवर्ती और कठिन कारागार के बन्दी थे उस प्रकार तो नहीं, किन्तु धर्मपूर्ण सुशीलता के द्वारा दैत्यर्षि प्रह्लाद के समय केवल दिक्पाल और