[स्वयंवरा केशिनी कन्या के लिये विरोचन और सुधन्वा का विवाद, ब्राह्मण महत्त्व वर्णन]सम्राट् प्रह्लाद की भगवद्भक्ति और धर्मपरायणता तो प्रसिद्ध ही है, किन्तु उनकी न्यायशीलता भी किसी न्यायशील सम्राट् से कम न थी। प्रत्युत उनके समान न्यायशील शासक किसी इतिहास में कदाचित् ही कोई मिलेगा। राजा में सत्य की बड़ी भारी आवश्यकता होती है। सत्यहीन शासक का कोई मित्र नहीं होता और उसके सपरिकर परिवार का सर्वनाश हो जाता है । जिस प्रकार लाठी लेकर चरवाहे अपने पशुओं की रक्षा करते हैं, उस प्रकार किसी पर प्रसन्न होकर देवता लोग उसकी रक्षा नहीं करते, बल्कि वे जिसकी रक्षा करना चाहते