एक रूह की आत्मकथा - 46

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चाचा-चाची जब चले गए, तो जया के पति ने जया को बहुत मारा। उसका शरीर जगह-जगह टूट-फूट गया, पर वह भी हाथ-पाँव चलाती रही। मारकर जब वह चला गया, जया ने मांग का सिन्दूर धो डाला, चूड़ियाँ तोड़ डालीं और अपने मन से इस निरर्थक रिश्ते को धो-पोंछ डाला। लौकर पति ने उसकी यह हालत देखी तो वह मुहल्ले की गँवार औरतों को बुलाकर उसे दिखाने लगा कि ‘कोई सुहागिन स्त्री ऐसा करती है।’ सभी औरतों ने उसे कोसा....बुरा-भला कहा। वह असती व बुरी स्त्री करार दे दी गई पर वह वैसे ही पत्थर बनी बैठी रही। उसका दिमाग बस