भाग 25: जीवन सूत्र 27: जीवन के हर क्षण का सदुपयोग करें गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते। स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।(2/4)। इसका अर्थ है,"(सम बुद्धि रूप कर्म योग के विषय में)हे अर्जुन,संसार में इस कर्म योग के आरंभ का अर्थात बीज का नाश नहीं होता,धर्मयुक्त कर्म का विपरीत फल भी नहीं मिलता।इसका थोड़ा सा भी उद्यम जन्म-मरणरूप महान् भय से प्राणियों की रक्षा करता है। भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम समबुद्धि रूप कर्म या धर्म रूप कर्म की अवधारणा को एक सूत्र के रूप में लेते हैं।वास्तव में थोड़े कर्मों