नंदिनी (भाग-2)

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‘‘छोड़ो भी जीजाजी, क्यों बात का बतंगड़ बनाते हो. मैं अब चलूंगी,’’ नंदिनी उठ खड़ी हुई.‘‘इस तरह बिना खाएपिए? रुको मैं कोई ठंडा पेय ले कर आता हूं.’’‘‘नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए,’’ नंदिनी ने अपना बैग उठा लिया.‘‘ठीक है, चलो मैं तुम्हें घर तक छोड़ करआता हूं.’’‘‘मैं अपनी कार से आई हूं.’’‘‘अपनी कार में जाना भी अकेली युवती के लिए सुरक्षित नहीं है,’’ तरंग तुरंत साथ चलने के लिए तैयार हो गया और क्षणभर में ही दोनों एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले मुख्य द्वार से बाहर हो गए.द्वार बंद कर जब नम्रता पलटी तो खुशी और पू