निःसंतान और बांझ जैसे ह्नदयविदीर्णक शब्द बार-बार, लम्बे समय तक सुनने के बाद राय दम्पति के घर पुत्र पैदा हुआ था। यह निराशा पर आशा की बहूत बड़ी विजय थी। बलवंत राय और संध्या राय खुशी से फुले नहीं समा रहे थे। सान्तवना और दिलासा देने वाले को भगवान पर बहूत बड़ा भरोषा हो गया था और निंदा और शिकायत करने वालों के जुबान पर ताला लग गया था मगर भगवान के चमत्कार पर भरोषा दस गुना हो गया था। खैर बच्चे की छठियारी में सांत्वना-दिलाशा देने वाले भी लड्डू गटक रहे थे तो वहीं निंदा-शिकायत करने वाले भी