उधर श्यामा का फ़ैसला अटल था। वह तलाक चाह रही थी पर बच्चों को बता नहीं पा रही थी; इसीलिए केस नहीं चला पा रही थी। चाहे जो भी हो श्यामा यह कतई नहीं चाहती थी कि बच्चे इस राज़ को जानें। आदर्श को भी यही डर खाए जा रहा था कि बच्चों को यह पता नहीं चलना चाहिए। एक रात आदर्श ने श्यामा से कहा, “श्यामा यदि यही तुम्हारा अंतिम फ़ैसला है तो फिर क्या तुम मेरे ऊपर एक उपकार करोगी? मेरी एक बात मानोगी? यदि अलग ही होना है तो कोर्ट कचहरी क्यों करना है? हम आपसी समझौते