नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 12

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मुझे घर आया देखकर आपा की जान में जान आई। उन्होंने इतनी देर लगाने पर मुझे थोड़ा डाँटा भी। मुझे पता था कि ये आपा की डांट नहीं बल्कि मेरे लिए उनकी परवाह है इसलिए उनका डांटना मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा और मैं मुस्कुराते हुए बड़ी आपा के गले लग गई। मेरे ऐसा करने से आपा का गुस्सा शांत हो गया और उन्होंने धीरे से मेरे गालों को खींचकर हल्के हाथ से मेरी पीठ पर मारा और मेरे माथे को चूम लिया। आपा का अच्छा मिजाज देखकर मैंने आज का किस्सा सुनाते हुए छह आने बड़ी आपा के हाथ