नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 8

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'‘जुबैदा! आपका नाम है जुबैदा... वो तो आपके तांगे पर लिखा है तो क्या ये वही तांगा है।’’ ये जानकर हमारे आश्चर्य और जिज्ञासा की सीमा न रही। तो काकी भी जैसे अपनी हर दास्तां सुनाने के लिए तैयार थी। वो बिना रुके बोली -‘‘निकाह के साल भर बाद ही अल्लाह के फ़ज़ल से बेटी रुखसार गोद में आ गई और रुखसार के सालभर का होते -होते तुम्हारे भाई बाबू हमारी कोख में आ गए।’’ काकी की आँखों में छाई उदासी और बैचेनी हमें कुछ भी बोलने या पूछने से रोक देती इसलिए हम लड़कियाँ चुपचाप काकी के बोलने का