अध्याय– ६.जन्मान्तर प्रगति या पतन के आधार—आत्म-सत्ता के संकल्प एवं कर्ममहर्षि वशिष्ठ राम को पुनर्जन्म प्रकरण पढ़ा रहे थे उस समय की बात है जब एक प्रसंग में उन्होंने राम को बताया—आशापाश शताबद्धा वासनाभाव धारिणः। कायात्कायमुपायान्ति वृक्षाद्वृक्षमिंवाण्डजा।।"हे राम! मनुष्य का मन सैकड़ों आशाओं (महत्वाकांक्षाओं) और वासनाओं के बन्धन में बंधा हुआ मृत्यु के उपरान्त उस क्षुद्र वासनाओं की पूर्ति वाली योनियों और शरीरों में उसी प्रकार चला जाता है जिस प्रकार एक पक्षी एक वृक्ष को छोड़कर फल की आशा से दूसरे वृक्ष पर जा बैठता है।"मनुष्य जैसा विचारशील प्राणी इतर योनियों—मक्खी, मच्छर, मेढक, मछली, सांप, बैल, भैंस, मगर, नेवला,