विक्रम सिंह जी के स्वर्ग सिधारने के बाद सारे जमीन जायदाद की सारी जिम्मेदारी अब रूद्रप्रयाग पर आ पड़ी,उसका सारा दिन मुनीम जी के साथ बहीखातों की जाँच करने में ही ब्यतीत हो जाता और वो अब प्रयागी को कम समय दे पाता था,फिर भी प्रयागी बुरा ना मानती और घर-गृहस्थी के कामों में स्वयं को उलझाएं रखती,अब प्रयागी के पिता हरगोविन्द भी ना रहें थें लम्बी बिमारी के चलते उनका निधन हो चुका था,इसलिए प्रयागी के पास मायके में कोई अपना ना रह गया था, वह ही आगंतुकों का अतिथि-सत्कार करती थी,कोई भी मेहमान उसके द्वार से अप्रसन्न होकर