मीत (भाग-२)

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मन कभी-कभी थोड़ा ठहरना चाहता है, खोजता है ज़रा सा सुकून और अपने हिस्से का शांत कोना। मीत की यादें जो बिन बुलाए मेहमान की तरह वक़्त - बेवक्त चली आती थीं - छीन रहीं थीं मेरे मन का सुकून। मैंने फ़िर एक गहरी साँस छोड़ी और धीमे से बुदबुदाई – “मीत, आई मिस यू!” “मिस यू टू प्रिया !” ख़ामोशी ने हूबहू मीत की आवाज़ में ज़वाब दिया, उदासियों में उम्मीद के मोती पिरोती आवाज़! मन किया मीत को फ़ोन करूँ औऱ पूछ लूँ वो सारे सवाल जो मेरे भीतर किसी ज्वाला से धधक रहें हैं , जो हर