एक रूह की आत्मकथा - 18

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लीला ने रेहाना के दरवाजे पर दस्तक दी तो देर तक दरवाजा नहीं खुला।लीला ने सोचा कि लगता है कि वह सो गई है । दरवाजे के पास लगी कॉलवेल भी खराब थी।क्या करे लौट जाए?नहीं ,इतनी दूर आई है तो मिलकर ही जाएगी।उसने फिर जोर से दरवाजा खटखटाया।अबकी उसे रेहाना के पैरों की आहट सुनाई दी।अस्तव्यस्त कपड़ों में रेहाना ने दरवाजा खोला तो लीला को देखकर चौक गई।--'तुम!अचानक!बिना किसी सूचना के!कैसे!'-"अब सब कुछ बाहर ही पूछ लोगी कि भीतर भी आने दोगी।"कहती हुई लीला भीतर आ गई।रेहाना उसके और वह उसके घर बेतकल्लुफ़ी से आती -जाती रही हैं।उन दोनों