बच्चों के हॉस्टल चले जाने के बाद लीला और भी उदास हो गई थी।वह दिन -भर अपने बंगले में बावरी- सी घूमती रहती।रोज न तो वह शॉपिंग पर जा सकती थी ,न सैर -सपाटे पर।शाम से देर रात तक के लिए तो क्लब था ....शराब था....दोस्त थे,पर दिन में सभी अपने -अपने काम में व्यस्त रहते थे।किसी के पास उसके लिए वक्त नहीं था।वही एक बेकार थी।काश, उसने प्रेम -प्यार के चक्कर में अपनी पढ़ाई अधूरी नहीं छोड़ दी होती।वह भी कोई नौकरी करती तो व्यस्त तो रहती।खालीपन इंसान को खोखला कर देता है।ऊपर से खाली दिमाग शैतान का घर