इश्क़ ए बिस्मिल - 46

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लगभग एक घंटा वह वैसे ही बैठा रहा था। बिल्कुल खामोश, विरान सा। ज़मान ख़ान भी उसे छोड़ कर कहीं जाने को तय्यार नहीं थे। वह उठा था और बिना एक लफ्ज़ कहे कमरे से जा रहा था। ज़मान साहब ने उस से बेचैन होकर पूछा था। “कहाँ जा रहे हो उमैर?” इस सवाल पर उसके बढ़ते क़दम थमे थे मगर वह मुड़ा नहीं था। “घबराए नहीं। मैं मरने नहीं जा रहा।“ उसकी इस बात पे ज़मान खान तड़प गए थे। उनका जवान बेटा इस क़दर टूट चुका था। उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था की ज़िंदगी में कभी ऐसा भी