'प्यार' का टुकड़ा...

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ताड़ियों संग घुमते पहिए...चमचमाती घंटी की 'ट्रिंग...ट्रिंग'...और 'हैंडल' पर लटकती हुई कपड़े की 'थैली'..। जिसके भीतर तेल से सनी हुई एक 'कागज़ की पुड़की' बस सवार हुए चली आ रही हैं। जिसकी मंज़िल है 'खेतों की मुंडेर'...। दूर से नज़र आ रही ये धुंधली तस्वीर धीरे—धीरे पास आई...तो कानों में आवाज़ पड़ी ''जा दौड़, मैं पीछे आया''...। फिर बूढ़े हाथों ने वो 'पुड़की' थमा दी...। जो छूटकर ज़मीन पर जा गिरी...। तभी चौंकते हुए 'गीता' की आंख खुल गई..। उसने अपने चारों ओर नज़रें घुमाई, देखा तो सामने वो तस्वीर न थी...