हीरा दे : एक वज्रहृदया क्षत्राणीसंवत 1368, वैशाख का निदाघ पत्थर पिघला रहा था। तभी द्वार पर दस्तक सुनी और हीरा-दे ने दरवाजा खोला। स्वेद में नहाया उसका पति विका दहिया एक पोटली उठाये खड़ा था। उसका काँपता शरीर और लड़खड़ाता स्वर, चोर या तो नैण से पकड़ा जाता है या फिर वैण से। तिस पर हीरा-दे तो क्षत्राणी थी; वह पसीने की गंध से अनुमान लगा सकती थी कि यह पसीना रणक्षेत्र में खपे पराक्रमी का है या भागे हुए गद्दार का।" मैंने जालोर का सौदा कर दिया " - विका ने हीरा-दे की लाल होती आँखें देखकर सच