किंबहुना - 22

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22 मैसेज भेजने के बाद तीन-चार दिन शांति से कट गए थे। खबर नहीं थी, भीतर ही भीतर इतनी बड़ी खिचड़ी पक रही है! हुआ यह कि जब उसने पूरी तरह नइंयाँ टेक दी और भरत को ब्लाॅक कर दिया तो वह बुरी तरह घबरा गया। उसे बड़ी ठेस लगती कि जिसने साथ जीने मरने की कसमें खाईं और जो दर्जनों बार अंक शायिनी बनी, उसने इस कदर मुँह मोड़ लिया कि अब उसकी सूरत भी नजर नहीं आती! कहाँ वह रोज भाँति-भाँति के चित्र डालती, अपनी कविताएँ डालती। सच तो यह कि उसे उसकी देह से अधिक उसके शब्दों