कोट-२९ सुबह हवाई अड्डे को निकला तो हल्की ठंड थी। कोट पहना था, उसकी जेबों में आवश्यक वस्तुएं रखी। हवाई जहाज ने ठीक समय पर उड़ान भरी। जब बहुत ऊँचाई पकड़ चुका था, बादलों का दूर-दूर तक पता नहीं था। निरभ्र आकाश। सूर्य की किरणें हवाई जहाज के अन्दर तक आ रही थीं। लग रहा था जैसे फोटोन विस्फोट हो रहा था आसपास। जहाज की नन्ही खिड़की से बाहर देखा,कुछ नहीं था दूर-दूर तक,आकाश के सिवाय। साथ बैठी महिला मित्र ने पूछा," ये जहाज रूक क्यों गया?।" मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा," ये विमान बालायें चाय नाश्ता दे