मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व सीता

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रावण अत्यंत विनम्रतापूर्वक मारीचि को झुक कर प्रणाम करता है और मारीचि का माथा ठनक जाता है | रावण बोला मामा मारीचि चलिये स्वर्ण मृग बनना है आपको और राम को छल से भटका कर दूर ले जाना है । रावण जैसे महाबलशाली के द्वारा अपने दस सिरों को झुका कर बीस हाथों से विनम्र प्रणाम को देख कर मारीच मन ही मन सोचता है ,नवनि नीच की अति दुखदाई ।जिमि अंकुश धनु उरग बिलाई ॥भयदायक खल की प्रिय बानी ।जिमि अकाल के कुसुम भवानी ॥नीच का झुकना (विनम्रता) भी अत्यंत दुखदायी परिणाम लाने वाली होती है । जैसे अंकुश