कबीर के राम तत्व विवेचना

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कबीर के राम तत्व विवेचना ***** राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस। बरषत वारिद-बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥ *** राम- नाम का आश्रय लिए बिना जो लोग मोक्ष की आशा करते हैं अथवा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चारों परमार्थों को प्राप्त करना चाहते हैं वे मानो बरसते हुए बादलों की बूँदों को पकड़ कर  आकाश में चढ़ जाना चाहते हैं। भाव यह है कि जिस प्रकार पानी की बूँदों को पकड़ कर कोई भी आकाश में नहीं चढ़ सकता वैसे ही राम नाम के बिना कोई भी परमार्थ को प्राप्त नहीं कर सकता। वह सिद्ध है और एक सिद्ध शासक होगा। उसके पास करुणा, न्याय की भावना और साहस है , और वह इंसानों के बीच कोई भेद नहीं करता है - बूढ़ा या जवान, राजकुमार या किसान; वह सबके प्रति समान विचार रखता है। साहस, वीरता और सभी गुणों में - उसके बराबर कोई नहीं। राम कबीर और तुलसी दोनों के इष्ट हैं. इनके रामों की तुलना हुई है. असमानता की ज़्यादा हुई है, समानता की कम. निराकार निर्गुण मत