कबीर समाज सुधारक विशिष्ट ज्ञान मानव मात्र परम कल्याण

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कबीरदासजी के अनुसार मनुष्य की श्रेष्ठता उसके ऊँचे कर्मों के कारण होती है कर्म से ही मनुषय जाना जाता है। वस्तुतः कबीर की सामाजिक चिन्ता उस सच्चे आध्यात्मिक व्यक्तित्व की चिता थी जो मानवतावाद, सर्वात्मवाद अद्वैतवाद की दृष्टि से समाज को जानता-पहचानता है ।  यह सुस्पष्ट तथ्य है कि कबीर की मूल चिन्ता आध्यात्मिक है, लेकिन अध्यात्म के क्षेत्र में उनका सजग व सचेत व्यक्तित्व प्रकाश में आता है । न पृथ्वी न जलं नाग्निर्नवायुर्द्यौर्न वा भवान्।एषां साक्षिणमात्मानंचिद्रूपं विद्धि मुक्तये॥१-३॥ पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात । एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात ।।-- कबीर साहेब लोगों को नेकी