निर्वाण--(अन्तिम भाग)

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दिन बीत रहे थे अब भामा ने धर्मी से भी मिलना जुलना छोड़ दिया था,बस ड्यूटी के बाद खामोश सी अपने कमरें में पड़ी रहती,वो दिनबदिन ज्यादा सोचने के कारण कमजोर भी होती जा रही थी,उसे ना अब अपने खाने का होश रहता और ना अपना ख्याल रखने का,वो कई महीनों से अपने घर भी ना गई थी,वो किसी की मदद नहीं कर पा रही थी ना तो लोगों की और ना ही खुद की इसलिए और मायूस हो चुकी थी.... फिर एक रोज़ कुछ ऐसा हुआ जिसका शायद भामा को बहुत दिनों से इन्तजार था,हुआ यूँ कि कस्बे के