गुनाहों का देवता--धर्मवीर भारती (भाग 2)

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धर्मवीर भारती :: :: :: गुनाहों का देवता :: उपन्यास ''अबकी जाड़े में तुम्हारा ब्याह होगा तो आखिर हम लोग नयी-नयी चीज का इन्तजाम करें न। अब डॉक्टर हुए, अब डॉक्टरनी आएँगी!'' सुधा बोली। खैर, बहुत मनाने-बहलाने-फुसलाने पर सुधा मिठाई मँगवाने को राजी हुई। जब नौकर मिठाई लेने चला गया तो चन्दर ने चारों ओर देखकर पूछा, ''कहाँ गयी बिनती? उसे भी बुलाओ कि अकेले-अकेले खा लोगी!'' ''वह पढ़ रही है मास्टर साहब से!'' ''क्यों? इम्तहान तो खत्म हो गया, अब क्या पढ़ रही है?'' चन्दर ने पूछा। ''विदुषी का दूसरा खण्ड तो दे रही है न सितम्बर में!'' सुधा