सोई तकदीर की मलिकाएँ 18 सूरज हर रोज चढता रहा छिपता रहा । रात आती रही जाती रही । गर्मी आई फिर बरसात आई । वर्षा आई फिर सर्दी दाँत किङकिङाती हुई आई और चली गई । इसी तरह मौसम आते रहे , जाते रहे । जो छोटे बच्चे थे , वे बङे हो गये । जो बङे थे , वे बूढे हो गये । जो बूढे थे , वे परलोक सिधार गये । उनकी जगह नवागतों ने ले ली । इसी तरह दिन सप्ताह में बदले । सप्ताह महीने में और महीने साल में बीत