रवि कुमार सरावगी ग़मगीन बैठा था,अपनी विशालकाय कुर्सी मे अपनी एक हथेली कुर्सी की पुश्त से टिका कर किसी गहरी सोच मे डूबा था,उसकी आंखो से आंसू टपक रहे थे,और चेहरा मायूसी भरा था।अभी उसकी उम्र महज 30 साल की थी,मगर आज की तारीख मे वो ज्वेलरी के धंधे मे अपने शहर का बेताज बादशाह था,उसके दुकान के नाम का सिक्का चला करता था,बडे बडे लोग उसके दुकान के ग्राहक थे,और ऊंची हस्तियां भी उसके ब्रांड का प्रचार किया करती थीं।फिर ऐसा शानदार आदमी दुख मे डूबा क्यों बैठा था,दरअसल उसे अभी अभी समाचार मिला था कि कनाडा मे उसके