सोई तकदीर की मलिकाएँ 16 पथकन से लौट कर केसर को कोठरी में आते ही अपनी सुबह की बेवकूफी फिर से याद हो आई । उसने अपनेआप को जी भर कर कोसा – ये आज हो क्या गया था उसे । ऐसे कैसे उसने शरम हया बेच खाई थी कि भोले के गले से लिपट गई । गले से चिपकी तो चिपकी , चिपक कर रो भी दी । पता नहीं सरदार ने इस सब का क्या मतलब निकाला होगा । क्या सोचा होगा उसने । यह सब ऊटपटांग बातें उसके दिमाग में आई कहाँ से ।