दिसम्बर का महीना उसपर से दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड और सुबह के छः बजे अचानक फ़ोन की घंटी बजे तो मिहित ही क्या किसी का भी मूड ख़राब हो जायेगा। आँखें खोले बिना, हाथ बढाकर फ़ोन उठाने से पहले मन में यही ख़याल आया, “अरे यार अभी चार बजे तो सोया था किसको आफ़त आन पड़ी”। ख़ैर फ़ोन उठाना तो था ही, सो उठा लिया| इससे पहले कि मिहित कुछ बोल पाता, दूसरी तरफ से एक रूँधी हुई सी आवाज़ आयी, “ बेटा मैं मधु का पापा बोल रहा हूँ, मैं इस वक्त नवजीवन अस्पताल, ग़ाज़ियाबाद में हूँ, मधु की