अछूत कन्या - भाग १७  

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विवेक की बात सुनते ही गंगा ने अपनी आँखों की पलकों को उठाकर उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों से भी आँसू बह रहे थे। वह दोनों कुछ देर तक एक दूसरे की तरफ देखते रहे और उसके बाद गंगा विवेक के सीने से लिपट गई। अपनी आँखों से प्रस्फुटित होते ना जाने कितने आँसुओं को उसने विवेक की कमीज पर बहा दिया। विवेक गंगा के सर पर हाथ फिरा कर बार-बार कह रहा था, “गंगा शांत हो जाओ, गंगा मत रोओ। अब तुम मुझे मिल गई हो ना, मैं ईंट से ईंट बजा दूंगा। मैं वीरपुर गाँव को बदल दूंगा।