सुहागिनें--(मोहन राकेश की कहानी)

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कमरे में दाख़िल होते ही मनोरमा चौंक गई. काशी उसकी साड़ी का पल्ला सिर पर लिए ड्रेसिंग टेबल के पास खड़ी थी. उसके होंठ लिपस्टिक से रंगे थे और चेहरे पर बेहद पाउडर पुता था, जिससे उसका सांवला चेहरा डरावना लग रहा था. फिर भी वह मुग्धभाव से शीशे में अपना रूप निहार रही थी. मनोरमा उसे देखते ही आपे से बाहर हो गई. “माई,” उसने चिल्लाकर कहा,“यह क्या कर रही है?” काशी ने हड़बड़ाकर साड़ी का पल्ला सिर से हटा दिया और ड्रेसिंग टेबल के पास से हट गई. मनोरमा के ग़ुस्से के तेवर देखकर पल-भर तो वह सहमी