मै जि़न्दा हूं, चाचा

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मेरे जूते के सोल की सिलाई उधड गयी थी,ढूंढते हुये मै एक मोची के पास पहुंचा,और मोल भाव करके जूता उसे सीने को दे दिया,बगल मे उसके एक छोटा सा टेबल पडा था,उसी पर बैठ गया,और उससे बाते करने लगा,जो मेरी आदत थी,कहानियां ऐसे ही तो मिलती थी मुझे।थोडी ही देर मे उससे नजदीकी बढ गयी,और उसने दो चाय के लिये बगल वाली दुकान मे आवाज़ लगा दी,मै आराम से बैठ गया,और उसका नाम पूछा,वो कोई 65 साल की उमर का था। उसका नाम अब्दुल रहमान था,और कोई 5 साल से जूते ठीक करने का काम कर रहा था,उससे पूछने